सत्यकेतु विद्यालंकार वाक्य
उच्चारण: [ setyeketu videyaalenkaar ]
उदाहरण वाक्य
- |लेखक: सत्यकेतु विद्यालंकार |प्रकाशक: श्री सरस्वती सदन नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 147 |
- डा॓. सत्यकेतु विद्यालंकार जैसे विद्वानों का तो मानना है कि सहयोगी संगठन बनाकर व्यावार की शुरुआत भारत में वैदिक युग में भी आरंभ हो चुकी थी.
- सत्यकेतु विद्यालंकार ने ‘ प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग ' (पृष्ठ 148) में बताया ' पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार पहला आर्य राजा वैवस्वत मनु था।
- डा॓. सत्यकेतु विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत की शासन-संस्थाएं एवं राजनीतिक विचार में बौद्ध ग्रंथों के हवाले से लिखा है कि उन दिनों अठारह प्रकार की श्रेणियां थीं.
- सत्यकेतु विद्यालंकार के “वैदिक युग” (पृष्ठ-232) में लिखा है कि वर्तमान ईराक़ और तुर्की राज्य के कुछ क्षेत्रों से प्राप्त भग्नावशेष व पुरातन सभ्यताओं से हमें पता चलता है कि उनके भारत से व्यापारिक सम्बन्ध थे।
- सत्यकेतु विद्यालंकार के “ वैदिक युग ” (पृष्ठ-232) में लिखा है कि वर्तमान ईराक़ और तुर्की राज्य के कुछ क्षेत्रों से प्राप्त भग्नावशेष व पुरातन सभ्यताओं से हमें पता चलता है कि उनके भारत से व्यापारिक सम्बन्ध थे।
- इस स्थिति पर टिप्पणी करते हुए डाॅ. सत्यकेतु विद्यालंकार लिखते हैं-‘ उत्तर वैदिक युग में ही विभिन्न शिल्पियों का अनुसरण करने वाले, सर्वसाधारण जनता के व्यक्ति, अपने संगठन बनाकर आर्थिक उत्पादन में तत्पर हो गए थे.
- सत्यकेतु विद्यालंकार पर्दा प्रथा पर लिखते हैं … उल्लेखनीय है कि पर्दे की प्रथा का प्रचार विशेषतया उन्हीं प्रदेशों में था जो यवन, शक, कुषाण, हूण आदि विदेशी जातियों द्वारा आक्रांत हुए थे, मध्य भारत तथा दक्षिणी प्रदेशों में इसका प्रचलन नही हुआ था।
- ‘पाचजन्य‘ ने इस संदर्भ में जुलाई से सितम्बर, १९५९ में ही जयप्रकाश नारायण, के०ए० मुंशी, मीनू मसानी, मेहरचंद महाजन, सत्यकेतु विद्यालंकार आदि अधिकारी विद्वानों के लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी, जिसमें वर्तमान संविधान की अपूर्णता पर प्रकाश डालते हुए उसके पुनर्निरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
- किन्तु “पाचजन्य” ने इस संदर्भ में जुलाई से सितम्बर, १९५९ में ही जयप्रकाश नारायण, के.ए. मुंशी, मीनू मसानी, मेहरचंद महाजन, सत्यकेतु विद्यालंकार आदि अधिकारी विद्वानों के लेखों की एक श्रृंखला प्रकाशित की थी, जिसमें वर्तमान संविधान की अपूर्णता पर प्रकाश डालते हुए उसके पुनर्निरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
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